एक वृद्ध व्यक्ति अपने बहू बेटे के यहाँ रहने के लिए शहर गए ! उम्र के इस पड़ाव पर वह अत्यंत कमजोर हो गए थे ! उनके हाथ कांपते थे और दिखाई भी कम पड़ता था ! बेटा, बहू और उनका चार वर्षीय पता सब लोग एक घर में साथ रहते थे और एक साथ डिनर टेबल पर खाना खाते थे लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यक्ति को खाना खाने में बड़ी दिक्कत होती थी ! कभी मटर के दाने उसकी चम्मच से निकल कर फर्श पर बिखर जाते तो कभी हाथ से दूध छलक कर मेजपोश पर गिर जाता ! बेटा बहू एक दो दिन ये सब सहन करते रहे पर अब उन्हें अब अपने पिता के इस काम से चिढ़ होने लगी ! बेटे ने कहा, इनका कुछ करना पड़ेगा ! बहू ने भी हाँ में हाँ मिलाई और बोली— आख़िर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मज़ा किरकरा करते रहेंगे और हम इस तरह चीजों का नुकसान होते हुए भी नहीं देख सकते !
अगले दिन जब खाने का वक़्त हुआ तो बेटे ने एक पुरानी मेज़ को कमरे के कोने में लगा दिया ! अब बूढ़े पिता को वहीं अकेले बैठे कर अपना भोजन करना था ! यहाँ तक कि उनके खाने के बर्तनों की जगह एक लकड़ी का कटोरा दे दिया गया था ताकि अब और बरतनों की टूट फूट ना हो सके ! बाकी लोग पहले की तरह ही आराम से बैठे कर खाना खाते और कभी कभार उस बुजुर्ग पिता की तरफ देखते तो उनको पिता की आँखों में आँसू दिखाई देते लेकिन यह सब देख कर भी बहू बेटे का मन नहीं पिघलता ! वे लोग छोटी सी गलती पर पिता को बहुत सी बातें सुना देते ! वहाँ बैठा बालक यह सब बड़े ध्यान से देखता रहता और खेलता रहता! एक रात खाने से पहले उस छोटे बालक को, उसके माता पिता ने जमीन पर बैठे कर कुछ करते हुए देखा ! पिता ने पूँछा, बेटा तुम क्या बना रहे हो ? बालक ने भोलेपन में उत्तर दिया— ” अरे मैं तो आप लोगों के लिए एक लकड़ी का कटोरा बना रहा हूँ, ताकि जब मैं बड़ा हो जाऊँ तो आप लोग इसमें खा सकें ! ” और वह पुनः अपने काम में लग गया !
बालक की इस बात का उसके माता पिता पर बहुत गहरा असर पड़ा ! उनके मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला और आँखों से आँसू बहने लगे ! वे दोनों बिना बोले समझ चुके थे कि अब उन्हें क्या करना है ! उस रात वे अपने बूढ़े पिता को वापस डिनर टेबल पर ले आये और फिर कभी उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया ! इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि हम लोग बच्चों को नैतिक शिक्षा देने की बात करते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि असली शिक्षा शब्दों में नहीं हमारे कर्मों में छुपी होती है ! अगर हम अपने बच्चों को ये उपदेश देते रहें कि बड़ों का आदर करो— सबका समान करो और ख़ुद इसके विपरीत व्यवहार करें तो बच्चा भी ऐसा करना सीखता है ! इसलिए कभी भी अपने माता–पिता के साथ ऐसा व्यवहार न करें कि कल को आपकी संतान को भी आपके लिए लकड़ी का कटोरा तैयार करना पड़े !
राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !