नैना बेटा जल्दी नाश्ता कर ले, कॉलेज के लिए देर हो जाएगी। आ रही हूं मां,, क्यों चिल्ला रही हो। अरे खाना तो कैंटीन में भी खा सकती हूं।
मां ने गुस्से से नैना को देखते हुए कहा,,,तुझे तो बस कैंटीन में चटोरी करने को मिल जाये बस…फिर तेरी तबियत खराब होगी,,, फिर क्या होगा? ओफ्फो नाराज मत हो मेरी प्यारी मां मैं खा रही हूं,,,इतना कहते ही नैना फटाफट खाना खाकर स्कूल के लिए चल देती है। नैना की मां राधा घर का काम निपटाने लगती है,,,दोपहर तक छोटी बेटी खुशबू स्कूल से आ जायेगी। पति रजनीश के ऑफीस जाने के बाद से शाम तक राधा मशीन की तरह काम में जुटी रहती है।
घर की साफ- सफाई के बाद नहाने के बाद दोपहर को राधा कुछ मिनट आराम से बैठती है और तभी दरवाजे की घंटी बजती है। वो लपक के दरवाजा खोलती है और बेटी खुशबू को हाथ मुंह धोने के बाद खाने के लिए डायनिंग टेबल पर आने को कहती है। यही है राधा की दिनचर्या। बेटी और पति के काम में राधा इतना डूब जाती है कि खुद का होश ही नहीं रहता। कहने को बेटियां अब इस लायक हैं कि मां का हाथ बटा सकें,,,मगर राधा अपनी लाडलियों से एक काम तक नहीं करवाती। उसने साफ कह रखा है,,,घर के काम की जगह वो उतने समय में अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे,,,आखिर वो अपनी दोनों बेटियों को लड़कों की तरह पाल रही थी। राधा सपना देख रही थी कि दोनों बेटियां इस लायक बन जाएं कि कभी किसी के सहारे की ज़रूरत न पड़े। दोनों बेटियां भी पढ़ाई में अव्वल थीं।
समय का पहिया तेजी से घूम रहा था,,,बड़ी बेटी नैना ने कॉलेज में टॉप किया और इंजीनियरिंग की तैयारी में लग गई। छोटी बेटी खुशबू अब कॉलेज जाने लगी थी। राधा दोनों के भविष्य को संवारने में तन- मन से लगी हुई थी। मगर समय के साथ राधा बीमार रहने लगी और बीपी के साथ ही सांस की समस्या बढ़ने लगी। अब वो दिन करीब आने को था जिसके लिए राधा ने सपने देखे थे। नैना ने इंजीनियरिंग की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की। अब जल्द ही उसका प्लेसमेंट होने वाला था। बेटी अपने पैरों पर खड़ी होने वाली थी,,, 60 साल के रजनीश और 50 साल की राधा के जीवन में बड़ी खुशियां आने वाली थी। इस खुशी के मौके पर उन्होंने माता के दर्शन का प्लान बनाया। जल्द ही रजनीश ने सभी का टिकट माता वैष्णों देवी के लिए बुक करवा लिया। वहां से वापस आकर नैना को ऑफीस जॉइन करना था।
पूरा परिवार वैष्णोदेवी के दर्शन कर कश्मीर घूमने चल पड़ता है। मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। पूरा परिवार कश्मीर स्थित परिमहल घूमने पहुंचा। फरवरी के महीना था। मौसम सुहाना था। पूरा बगीचा फूलों की खुशबुओं से महक रहा था। कश्मीर का मौसम सुहाना था। नैना और खुशबू वहां का नज़ारा देख बहुत खुश थीं। वहीं राधा कुछ असहज महसूस कर रही थी। पति रजनीश ने यह देखा तो,,,उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर दोनों बेटियों के संग घूमने लगा। कुछ समय बाद जब वो लौटे राधा वहां बेसुध पड़ी थी। चारों तरफ भीड़ जुट गई थी। रजनीश तुरंत राधा को नजदीक के हॉस्पिटल ले जाता है,,,डॉक्टरों ने राधा को मृत घोषित कर दिया। यह सुन पूरे परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा। दोनों बेटीयों का रो-रोकर बुरा हाल था। रजनीश दोनों बेटियों को हिम्मत देता और अपने दुख को छुपाने की नाकाम कोशिश करता। राधा को एयर एम्बुलेन्स से लखनऊ लाया गया। राधा का अंतिम संस्कार किया गया और फिर जिंदगी उसके बगैर आगे बढ़ने लगी।
बेटी नैना ने ऑफिस जॉइन कर लिया था। रजनीश भी ऑफीस जाने लगा था और खुशबू कॉलेज। सबको राधा की इतनी आदत थी कि उसके बगैर कोई काम नहीं होता था,,,,मगर अब बच्चे सब करने लगे थे। इधर शायद नैना और खुशबू की किस्मत में एक और बदलाव होने वाला था,,,जो उन्होंने कभी सोचा भी न था। पिता रजनीश ने राधा की मौत के दो महीने बाद ही दूसरी शादी कर ली। इस घटना से दोनों बेटियां स्तब्ध थीं। अब उन्हें अपने पिता से नफरत होने लगी थी। पिता ने एक विधवा महिला से विवाह कर लिया था,,,जिसका एक बेटा था।
उम्र के इस पड़ाव में विवाह करने की वजह से नाते रिश्तेदारों ने रजनीश से मुंह फेर लिया था। मगर रजनीश पर उस औरत का इश्क सवार था। दरअसल रजनीश के दूर के मामा ने उसको समझाया कि वो उस विधवा से शादी कर लेगा तो उसको एक बेटा मिल जाएगा जो उसके बुढ़ापे का सहारा होगा। बेटियां तो पराई हैं, कल चली जाएंगी। रजनीश का दिमाग भ्रष्ट हो गया और उसने हामी भर दी।
उधर शौतेली मां के आने के बाद से ही दोनों बेटियों का घर में तिरस्कार होने लगा। पिता का व्यवहार बदल गया था। पिता शौतेली मां के बेटे से काफी लगाव रखने लगे। दुखों के पहाड़ तले दबी दोनों बहनें जैसे-तैसे दिन गुजार रही थीं। ईश्वर ने उनकी किस्मत में और दुख लिखे थे। अभी मां को गुजरे हुए पहली बरसी भी नहीं हुई थी कि पिता रोड एक्सीडेंट में चल बसे। अब दोनों बेटियां अनाथ हो गईं। शौतेली मां घर पर कब्जा जमाना चाहती थी,,,मगर रिश्तेदारों ने उसको वहां से जाने के लिए मजबूर कर दिया। अब नैना और खुश्बू उस घर में अकेली बच गईं। घर में मां और पिता की यादों के साथ दोनों बहनें अपने जीवन को संवारने में जुट गई हैं,,,,जो सपना राधा ने उनके लिए देखा था।
लेखिका
संतोषी पांडेय