🌺पूर्वजो की बनाई परम्परा को भूल कर आधुनिकता ने हमसे क्या क्या छीना है🌺
🌺गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।
🌺जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।
🌺बेचा है ईमान धरम तब, घर में शानो शौकत आई है।
🌺संतोष बेच तृष्णा खरीदी, देखो कितनी मंहगाई है।।
🌺बीघा बेच स्कवायर फीट, खरीदा ये कैसी सौदाई है।
🌺संयुक्त परिवार के वट वृक्ष से, टूटी ये पीढ़ी मुरझाई है।।
🌺रिश्तों में है भरी चालाकी, हर बात में दिखती चतुराई है।
🌺कहीं गुम हो गई मिठास, जीवन से हर जगह कड़वाहट भर आई है।।
🌺रस्सी की बुनी खाट बेच दी, मैट्रेस ने वहां जगह बनाई है।
🌺अचार, मुरब्बे को धकेल कर, शो केस में सजी दवाई है।।
🌺माटी की सोंधी महक बेच के, रुम स्प्रे की खुशबू पाई है।
🌺मिट्टी का चुल्हा बेच दिया, आज गैस पे बेस्वाद सी खीर बनाई है।।
🌺पांच पैसे का लेमनचूस बेचा, तब कैडबरी हमने पाई है।
🌺बेच दिया भोलापन अपना, फिर मक्कारी पाई है।।
🌺सैलून में अब बाल कट रहे, कहाँ घूमता घर- घर नाई है।
🌺कहाँ दोपहर में अम्मा के संग, गप्पा मारने कोई आती चाची ताई है।।
🌺मलाई बरफ के गोले बिक गये, तब कोक की बोतल आई है।
🌺मिट्टी के कितने घड़े बिक गये, तब फ्रीज़ में ठंढक आई है ।।
🌺खपरैल बेच फॉल्स सीलिंग खरीदा, जहां हमने अपनी नींद उड़ाई है।
🌺बरकत के कई दीये बुझा कर, रौशनी बल्बों में आई है।।
🌺गोबर से लिपे फर्श बेच दिये, तब टाईल्स में चमक आई है।
🌺देहरी से गौ माता बेची, फिर संग लेटे कुत्ते ने पूँछ हिलाई है।।
🌺बेच दिये संस्कार सभी, और खरीदी हमने बे-हयाई है।
🌺ब्लड प्रेशर, शुगर ने तो अब, हर घर में ली अंगड़ाई है।।
🌺दादी नानी की कहानियां हुईं झूठी, वेब सीरीज ने जगह बनाई है।
🌺खोखले हुए हैं रिश्ते सारे, नहीं बची उनमें कोई सच्चाई है।।
🌺चमक रहे हैं बदन सभी के, दिल पे जमी गहरी काई है।
🌺गाँव बेच कर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।।
🌺जीवन के उल्हास बेच कर, खरीदी हमने तन्हाई है।।
पूर्वजो की बनाई परम्परा को भूल कर आधुनिकता ने हमसे क्या क्या छीना है🌺
साभार:- महेेन्द्र पाण्डेय माध्यम
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