कतिपय अधिकारियों की शनक ने अर्श से फर्श पर पहुंचाया
जल निगम के 24 हजार कार्मिकों को उनका भविष्य अंधकार में लग रहा है। वेतन, भत्ते, पेंशन और अपने अधिकारों के लिए जल निगम कार्मिक लगातार आन्दोलन रत हें तत्यपरक जानकारी देने के बाद भी इन 24 हजार कार्मिकों और परिजनों को मिलाकर लगभग एक लाख लोगों की गुहार सरकार सुन नही रही है। कार्मिकों का सीधा सीधा आरोप है कि चंद लोगों के लाभ के लिए जल निगम को जानबूझकर बरबाद किया जा रहा है। जल निगम के अर्श से फर्श पर पहुंचने की कहानी हम आपकों 24 हजार कार्मिकों की जुबानी बताने जा रहे है।
जल निगम पूर्ववर्ती एक शासकीय विभाग था जिसे विष्व बैंक से मात्र 40 करोड़ रूपये का ऋण लेने के निमित्त “उ॰प्र॰ जल सम्भरण तथा सीवर व्यवस्था अधिनियम 1975” प्रवृत्त करके तत्कालीन सरकार द्वारा उ.प्र.जल निगम में परिवर्तित कर दिया गया। अधिनियम की धारा-31 में यह व्यवस्था की गयी कि “जो सम्पत्ति और आस्तियाॅ एवं आभार स्वायत्त शासन अभियन्त्रण विभाग के प्रयोजनार्थ राज्य सरकार में नियत दिनांक से पूर्व निहित थी वह सब निगम (जल निगम) में निहित और उसको अन्तरित हो जायेगी” “और वे(अधिकार, दायित्व एवं आभार) सब निगम के अधिकार, दायित्व और आभार होंगे।”इसी अधिनियम की धारा 14 में जल निगम के वही कृत्य (कर्तव्य) तथा धारा-15 में जल निगम की शक्तियाॅ (अधिकार) निर्धारित किये गये हैं जो राज्याधीन तत्कालीन स्वायत्त शासन अभियन्त्रण विभाग में निहित थी। धारा 14,15 के सिवाय धारा 16,17 तथा 42 एवं 46 में जल निगम की जो शक्तियाॅ निहित हैं वह किसी नियामक प्राधिकारी (रेगुलेटरी अथारिटी) में ही निहित होती हैं। पेयजल, सीवरेज तथा डेªनेज के क्षेत्र में राज्य में जल निगम के एक मात्र स्थानीय प्राधिकरी होने के बावजूद जल निगम को राज्य शासन द्वारा वह संरक्षण प्रदान नहीं किया गया जैसा कि अधिनियम के प्राविधानों के अन्तर्गत अपेक्षित था। फलतः शनैः-षनैः प्रदेष में आवास एवं विकास परिषद तथा जनपदों में समय-समय पर स्थापित किए गये विकास प्राधिकरणों द्वारा अपनी अवासीय कालोनियों में पेयजल, सीवरेज तथा डेªनेज के कार्य स्वंय कराना प्रारम्भ कर दिये गये, बाद में देखादेखी प्राइवेट काॅलोनाइजर्स द्वारा भी अपने आवसीय परिसर में पेयजल सीवरेेज के कार्य बिना किसी प्लान के कराये गये जिससे जल निगम के कार्य भार में कमी होती गयी। इसके पष्चात् शासन द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में 10 प्रतिषत हैंण्डपम्प गैर अनुभवी संस्था यूपी एग्रो एवं मण्डी परिषद आदि को सौंपे गये जिससे कार्यभार में और कमी आयी। बाद में शासन द्वारा प्रयोग के तौर पर एक समानान्तर इकाई स्वजल धारा को खड़ा किया गया जिसके द्वारा बनायी गयी पानी की टंकी एवं पाइप लाइन फ्लॅाप साबित हुयी और पूरी धनराषि बेकार चली गयी। कालान्तर में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा पेयजल कार्य लैकफेड (यूपीसीएलडीएफ) को दिया गया, जिसे बाद में वापस किया गया किन्तु अभी भी 18 जनपदों में कार्य कराया जा रहा है इसी तरह, प्राइमरी विद्यालयों, आॅगनबाड़ी केन्द्रों तथा पंचायत घरों में पेयजल सम्बन्धी कार्य यूपी प्रोजेक्ट कार्पोरेषन को दे दिये गये तथा प्रदेष भर में लगे हैण्डपम्पों तथा ग्रामीण पेयजल योजनाओं के रख-रखाव का कार्य पंचायती राज-विभाग को हस्तान्तरित करा दिया गया जिससे जल निगम के कार्यभार में निरतंर कमी आती चली गयी। वर्ष 1996 के बाद विष्व बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम अथवा डच सहायतित योजनाओंपर ऋण/अनुदान मिलना पूरी तरह से बन्द हो गया।
यही नही एक तो कार्यभार में लगातार कमी ऊपर से तत्कालीन स्वायत्त शासन अभियन्त्रण विभाग के समय से जल निगम द्वारा किये जा रहे कार्यों के सापेक्ष पारिश्रमिक (अधिष्ठान व्यय) के रूप में प्राप्त होने वाली सेन्टेज राषि 22 प्रतिषत से घटाकर 1.अप्रैल1997 से मात्र 12.5 प्रतिषत कर दी गयी जिससे जल निगम में आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न होने लगी जो कालान्तर मे अनेक योजनाओं यथा, जवाहर रोजगार योजना सांसद एवं विधायक निधि अथवा क्षेत्र विकास निधि से कराये जाने वालेे कार्यों पर सेन्टेज राषि शासन द्वारा शूून्य कर दी गयी तथा अनेक कार्य 12.5 प्रतिषत सेन्टेज से भी कम दर पर शासन द्वारा कराये गये फलतः जल निगम को इन 24 वर्षों में लगभग 4100 करोड़ रूपये के राजस्व की हानि हुयी।
वर्तमान में जल निगम द्वारा गत वर्षों मे कराये गये कार्यों के सापेक्ष शासन पर जल निगम की अभी भी 1474 करोड़ रूपये से ऊपर धनराषि बकाया है। इसके भुगतान के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 09 फरवरी 2021, 22फरवरी 2021, 09 मार्च 2021 एवं 17 जुलाई 2021 तथा 02 अगस्त 2021 की बैठकों में स्पष्ट निर्देष के बाद भी शासन से सम्बन्धित विभागों द्वारा अभी तक नहीं दी गयी। इसी माह मानसून सत्र में अनुपूरक बजट विधानमण्डल द्वारा पारित कर दिये जाने के बाद भी बकाया सेन्टेज की राषि नहीं दी जा रही है। स्पष्ट है कि यदि पारिश्रमिक रूप में मिलने वाली सेन्टेज राषि का प्रतिषत न घटाया गया होता तथा घटे सेन्टेज पर भी देय धनराषि का शासन द्वारा भुगतान न रोका गया होता तो जल निगम की शायद आज यह स्थिति न होती। शासन द्वारा शायद ही किसी विभाग के लिए ऐसी विचित्र प्रणाली रखी गयी हो कि शासन द्वारा दी गयी धनराषि से पूरी धनराषि का पहले कार्य किया जाय फिर धनराषिका उपयोगिता प्रमाणपत्र दिया जाय उसके बाद शासन द्वारा किसी अनुभवहीन संस्था से तीसरी पार्टी द्वारा सत्यापन कराया जाय तथा जब कार्य सत्यापित हो जाये तब शासन पारिश्रमिक के रूप में मिलने वाली सेन्टेज राषि अवमुक्त करेगा तब कही जाकर वेतन/पेंष्न मिलने की नौबत आयेगी।
स्थिति को इतना विकट बना दिया गया है कि जल निगम में कभी 208 शाखाएं (खण्ड), 42 मण्डल तथा 8 क्षेत्रीय कार्यालय थे, जिनमें 11 हजार के लगभग नियमित अधिश्ठान एवं 15 हजार फील्ड कर्मचारी कुल 26000 का स्टाफ कार्यरत था जो आज घटकर 137 खण्ड, 35 मण्डल तथा 8 क्षेत्रीय कार्यालयों में रह गया है। नियमित अधिश्ठान के स्वीकृत 8715 पदों के सापेक्ष मात्र 3572 कार्मिक तथा फील्ड कार्मियों के स्वीकृत 10581 धन 4141 बराबर 14722 पदों के सापेक्ष मात्र 5262 कार्मिक इस प्रकार निगम मेकुल 8784 कार्मिक ही कार्यरत हैं। स्पष्ट है कि वर्तमान में स्वीकृत पदों के सापेक्ष मात्र 40 प्रतिषत कर्मी निगम की सेवा में अपना योगदान दे रहे हैं। यानि जनसंख्या वृद्धि, कार्य विस्तार और संसाधन का आभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। एक-एक कर्मी चार-चार पटल का कार्य करते हुए मानसिक यन्त्रणा झेल रहें हैं, ऊपर से उन्हे पारिश्रमिक के रूप मे न तो सातवाॅ वेतनमान उनपर लागू किया गया है, न उन्हें छठवें वेतनमान का 01 जनवरी .2006 से 11 मार्च 2010 तक का बकाया दिया गया न ही 11 वर्षों से बोनस दिया जा रहा है राषिकरण तथा एलटीसी की सुविधा 2012 से बन्द है। 189 प्रतिषत महगांई भत्ते के स्थान पर कार्यरत को 164 प्रतिषत तथा पेंषनरों को 142 प्रतिषत अर्थात् कुल 47 प्रतिषत कम मंहगाई भत्ता/राहत मिल रहा है, वर्ष 2016 से सेवानैवृत्तिक देयों का भुगतान नहीं किया जा रहा है। वर्ष 2018 से अघोषित रूप से मृतक आश्रित कोटे में अनुकम्पा नियुक्तियाॅ बन्द कर दी गयी समय पर जीपीएफ राषि मिलना भी बन्द हो गया।बावजूद इसके इस प्रकार सातवें के बजाय छठवें वेतनमान में वह भी आधा अधूरा (खण्डित) पारिश्रमिक पाकर भी कार्मिक वर्तमान सरकार का पूर्ण सहयोग करते हुए पूरी निरूठा और लगन के साथ कार्य कर रहे हैं। ऐसी सहयोगात्मक स्थिति में भी षासन की आखिर क्या मजबूरी थी कि उसे अपने दायित्वों की पूर्ति के बजाय जल निगम को ही विभाजन करने का एक पक्षीय निर्णय लेना पड़ा।
यह कैसा बॅटवारा
वर्ष 1975 में जल निगम के गठन के उपरान्त जल निगम के पुनर्गठन की हमेषा ही कवायद होती रही। सर्वप्रथम वर्ष 1980 में हैदराबाद एडमिनिस्टेªटिव स्टाफ कालेज आफ इण्डिया को पुनर्गठन हेतु अनुबन्धित किया गया, फिर 1985 में सुरेन्द्र सिंह कमेटी का गठन किया गया जिसकी संस्तुति पर 5 सितम्बर 1985 से जल निगम में सभी प्रकार की नियुक्तियों पर रोक लगा दी गयी जो वर्ष 2008 तक प्रभावी रही। इसके बाद वर्ष 1992 में माननीय मन्त्रिमण्डल के 5 सदस्यों की समिति जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन नगर विकास मन्त्री श्रीमती प्रेमलता कटियार को सौेेंपी गयी थी की सस्ंतुतियाॅ प्राप्त हुई। वर्ष 1997-1998 में निगम द्वारा “षहजाद बहादुर (से. नि. आईएएस)कमेटी का गठन किया गया जिसके द्वारा भारत के सभी राज्यों में पेयजल एवं सीवरेज हेतु गठित संस्थाओं का अध्ययनका प्रतिवेदन निगम को सौंपा गया। वर्ष 1999-2000 में सेवानिवृत्त मुख्य सचिव वी.के. सक्सेना की अध्यक्षता में वीकेसक्सेना”समिति का गठन कियाा गया। समिति ने जल निगम को पेयजल अथारिटी तथा एक ही प्रषासनिक विभाग के अधीन रखे जाने का प्रतिवेदन दिया। इसके बाद तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में “टास्क फोर्स” समिति का गठन हुआ। वर्ष 2005 में जल निगम के पुनर्गठन हेतु पूर्व मुख्य सचिव वी.के. दीवान की अध्यक्षता में 5 वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों की दीवान कमेटी” निगम द्वारा गठित की गयी जिसकी संस्तुतियाॅ भी प्राप्त हुई। वर्ष 2015-2016 में कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति मुख्य सचिव महोदय द्वारा गठित की गयी जिसने तत्कालीन स्वायत्त शासन अभियन्त्रण विभाग से जल निगम में अन्तरित कर्मियों की पेंषन टेªजरी से सम्बद्व करने की संस्तुति की। वर्ष 1980 से अबतक गठित समितियों में से किसी भी समिति द्वारा जल निगम को दो भागों में विभक्त करने की संस्तुति नहीं की गयी। किसी ने इसे पूर्ववत् शासकीय विभाग में परिवर्तित करने की तो किसी ने वर्कलोड के आधार पर शाखा/मण्डल स्थापित करने की तो किसी ने अपष्ष्टि प्रबन्धन के समस्त कार्य अनुरक्षण सहित जल निगम द्वारा ही कार्य कराये जाने की संस्तुति की तथा किसी ने पेेयजल प्र्राधिकरण बनाये जाने की तो किसी ने एक ही प्रषासनिक विभाग के अधीन रखे जाने की संस्तुति थी।
अब अचानक नौकरशाही की अक्षमता को छूपाने के लिए अचानक बिना किसी कमेटी, बिना किसी मंत्री समूह गठन जल निगम केा 2 भागों में विभक्त करने में उक्त अधिनियम में जो भी संषोधन किए गये हैं, अथवा उसके अनुसरण में जो कार्यकारी आदेष जारी किए गये हैं उनमें अनेक ऐसे प्रष्न हैं जिनका कहीं कोई समाधान दृष्टिगत नहीं है। यथा जल निगम एवं उसके कार्मिकों की देनदारियों के बारे में कुछ नहीं कहा गया। अकेले कर्मियों/पेंषनरों की ही लगभग 1817 करोड़ की देनदारी निगम पर है।
मुख्यमंत्री पर भारी नौकरशाही
जल निगम कर्मियों को 5 माह से वेतन एवं पेंषन का भुुगतान नहीं हुआ जिसके निमित्त आप द्वारा स्वंय हस्तक्षेप करते हुए 09 फरवरी 2021, 22 फरवरी.2021 तथा 09 मार्च 2021 के बाद 17 जुलाई 2021 एवं 02.अगस्त2021 को मुख्यमंत्री अध्यक्षता में 5 बैठके की गयी। जल निगम की विभिन्न विभागों पर 1474 करोड़ रूपये की जो देनदारी हैं उन्हें पहले 10 दिनों में अवमुुक्त करने के निर्देष दिये गये किन्तु जब आपके आदेषों का पालन नहीं हुआ तो समयबद्व रूप से पुनः धनावंटन के आदेष देते हुए फरवरी में प्रस्तुत होने वाले राज्य बजट में कतिपय प्राविधान करने के निर्देष दिये। ऐसा भी न होते देख पुनः जुलाई 2021 में अनुपुरक बजट में प्राविधान के निर्देष दिये गये। अगस्त में अनुपूरक बजट भी विधानमण्डल द्वारा पारित कर दिया गया किन्तु आपके आदेषों का नौकरशाही द्वारा पालन नही किया गया। यह कैसी विडम्बना है कि जल निगम का शासन पर बकाया (पारिश्रमिक) न दिया जाय और जल निगम की वित्तीय स्थिति दयनीय बताकर इसके विभाजन का ही निर्णय करा दिया जाय। जल निगम शासन के पूर्ण स्वामित्व वाला निगम है और वह शासन के निर्देष पर बिना सेन्टेज या कम सेन्टेज पर भी काम करने हेतु बाध्य रहा है फिर भी कम दर पर अर्जित सेन्टेज का शासन द्वारा भुगतान न कर अपने दायित्वों से मुॅह मोड़ लेना है। विभाजन किसी भी समस्या का समाधान नहीं है इससे तो और समस्याएॅ उत्पन्न होती हैं।
गौरवमयी इतिहास का ध्वस्तिकरण
शासन में बैठे कतिपय अधिकारियों में जल निगम की आलोचना कर इसकी बदनामी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और उनके द्वारा अपने कौषल को दर्षाने के निमित्त उ.प्र. जल सम्भरण तथा सीवर व्यवस्था अधिनियम को ही पलीता लगाकर 43 वर्ष से स्थापित परम्परा को ही ध्वस्त कर डाला। जल निगम में अध्यक्ष पद पर गठन से ही अति वरिष्ठ आईएएस अधिकारी तैनात होता था जिनके कार्यकाल में जल निगम अनेकों बार देष भर में न केवल सर्वश्रेष्ठ रहा वरन् वह अनेक बार पुरस्कृत हुआ। वर्ष 1983-1984 में तों भारत सरकार द्वारा समय से पूर्व लक्ष्य प्राप्त करने पर 7.50 करोड़ की अनुग्रह राषि देकर सम्मानित भी किया गया। वर्ष 2018-19 के ‘भव्य एवं दिव्य कुंभ की विष्व भर में सराहना हुई तो जल निगम अपने मुखिया (आप) के पीछे पूरे मनोयोग से खड़ा था। किन्तु वर्ष 2019-2020 में प्रबन्ध निदेषक पद पर विषेषज्ञ के बजाय आईएएस अधिकारी की तैनाती के साथ 3 संयुक्त प्रबन्ध निदेषक नये पद बनाकर 3 आईएएस अधिकारियों की तैनाती के साथ एक कंसलटेन्ट का मनमाना पद बनाकर 10 वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी को तैनात किया गया फलतः एक के स्थान पर 6 आईएएस के तैनात हो जाने पर पेयजल, सीवरेज व नदी प्रदूषण के क्षेत्र में जितना कार्य पूर्व के वर्षों में हो रहा था उसमें गति अथवा आकार में बढोत्तरी के बजाय वह और घट गया। गम्भीरता से देखा जाय तो प्रबन्धन या प्रषासन के नाम पर पुरानी व्यवस्थाओं विषयक पूर्व से स्थापित आदेषों को उलट-पलट डाला गया जिससे कर्मियों का भविष्य तो अन्धकारमय हुआ ही अपितु वह त्राहि-त्राहि करने लगे। आज भी जल निगम से लेकर षासन के उच्चाधिकारियों से यह पूछा जाय कि आखिरकार जल निगम के पास कितना वर्कलोड है उसके मुताबिक जल निगम का ढ़ाॅचा कितना होना चाहिए तो बगले झाॅकने के सिवाय इनके पास कोई जवाब नहीं है।
महोदय, इन तथ्यों के होते हुए भी जल निगम को 2 भागों मे विभक्त करने की अकस्मात कार्यवाही किये जाने का उद्ेष्य किसी की भी समझ सेे परे है जबकि जल निगम में बहुत पहले से ही नगरीय क्षेत्र, ग्रामीण क्षेत्र तथा नदी प्रदूषण हेतु स्तर-1 के अलग-अलग मुख्य अभियन्ता हैं, जिनके द्वारा यह कार्य स्वतन्त्रतापूर्वक किए जा रहे थें इनमें किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं थी किन्तु कोई कमी थी तो वह प्रषासनिक दबदबे की थी। शासन का ग्राम्य विकास विभाग चाहता था कि पेयजल का बजट उसका ज्यादा हेैं तो जल निगम उसके प्रषासनिक नियन्त्रण में होना चाहिए और जल शक्ति वाला चाहता था कि ‘हर घर नल से जल एक बड़ी योजना है तो जल निगम उसके प्रषासनिक नियन्त्रण में होना चाहिए तो नगर विकास विभाग की यही कामना थी कि जल निगम उसके हाथ नहीं निकलना चाहिए। पंचायती राज विभाग का अपना अलग ही हक था। इन त्रिमूर्ति मन्त्रालयों एवं प्रषासनिक विभाग की वर्चस्व की लड़ाई में वर्ष 1896 से लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग के क्षेत्र में काम करती आ रही एषिया स्तर की ख्याति प्राप्त संस्था “जल निगम ” की बलि ले ली गयी और उसके टुकड़े कर दिये गये। भारत के यषस्वी प्रधानमन्त्री जी ने इसी 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से सन् 1947 के भारत विभाजन की त्रासदी एवं उसके जख्मों को कभी न भूलने वाला बताते हुए एक भारत समग्र एवं सम्पन्न भारत पर बल दिया था, उसी प्रकार जल निगम का विभाजन भी लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण के क्षेत्र में एक ़त्रासदी है जो पेयजल एवं सीवरेज की, समग्र एवं समन्वित प्रणाली है को ध्वस्त कर देगा और उसका दंष प्रदेष की जनता दीर्घ समय तक भोगेगी क्योंकि जल निगम के सिवाय प्रदेष सरकार के पास पेयजल, सीवरेज, डेªनेज एवं नदी प्रदूषण नियन्त्रण की कोई दूसरी विषेषज्ञ संस्था नहीं है।
तत्कालीन स्वायत्त शासन अभियन्त्रण विभाग से जब कर्मियों को जल निगम में अन्तरित किया गया तो उनके पेंषन का भार शासन द्वारा स्वंय वहन किया गया जो अंषदान के रूप में आजतक जारी है किन्तु विभाजन प्रस्ताव में इसका कोई उल्लेख नहीं है। कर्मियों की सेवा यार्तों के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया न विभिन्न सेवा विनियमावली के प्राविधानों का कोई उल्लेख है। जल निगम की आस्तियों, सम्पत्तियों/परिसम्पत्तियों का विभाजन किस प्रकार होंगे इसका भी कोई उल्लेख नहीं है। तत्कालीन स्वायत्त शासन अभियन्त्रण विभाग के कर्मियों के पेंषन अंषदान व जीपीएफ मद में संचित निधि तथा 281 करोड़ रूपये के कम विनियोजन का भी कोई उल्लेख नहीं है, यह सब इस प्रकार के प्रष्न हैं जिनका कहीं कोई समाधान नहीं है, जिसके फलस्वरूप न्यायालयों में सैकड़ों विधिवाद चल रहे हैं शायद उसी से बचने के लिए नौकरषाही ने जल निगम को 2 भागो में विभक्त करने का अपरिपक्व निर्णय करा डाला है, अन्यथा 125 वर्ष के दीर्घ अनुभव वाली इस सरकारी संस्था को राज्य के हितों के विपरीत 2 भागों में विभक्त करने का कोई औचित्य नहीं था।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर और प्रदेष के हित में पेयजल, सीवरेज, डेªनेज, नदी प्रदूषण की समग्र एवं समन्वित व्यवस्था को ध्वस्त होने से बचाने,जल निगम के विभाजनकारी निर्णय को स्थगित कराने के लिए एक बार फिर जल निगम का 24 हजार कार्मिक सड़क पर उतरा है।
उ.प्र. जल निगम कर्मियों मुख्यमंत्री से अपील है कि पेयजल, सीवरेज डेªनेेज तथा नदी प्रदूषण की समग्र एवं समन्वित प्रणाली को ध्वस्त होने सेे बचाने हेतु जल निगम एवं अधिनियम संख्या 43 (1975द्ध में निहित उसके समस्त कार्यों को किसी एक प्रषासनिक विभाग एवं किसी एक मन्त्रालय के अधीन ही रखा जाय, जिससे प्रणाली की समग्रता एवं समन्वय भी बना रहे तथा योजनाओं की लागत में बचत हो। जल निगम को सम्पूर्ण रूप से किस प्रषासनिक विभाग/मन्त्रालय के अधीन रखा जाय, कर्मियों द्वारा यह निर्णय मुख्यंमत्री पर छोड़े जाने का निर्णय लिया गया।
ग्रामीण जलापूर्ति एवं नदी प्रदूषण (नमामि गंगे) तत्संबधी सीवरेज कार्य जो कुल कार्यों का दो तिहाई है, जलशक्ति मत्रंालय के अधीन नमामि गंगे एवं ग्रामीण जलापूर्ति विभाग के अन्तर्गत कर दिये गये हैं, केवल एक तिहाई कार्य ही नगर विकास विभाग के अन्तर्गत शेष रह गये हैं। अतः जल निगम को उसके समस्त कार्योंं एवं कर्मियों के साथ नवगठित जलषक्ति विभाग के अन्तर्गत लाते हुए जल शक्ति मत्रालय के अधीन जिस प्रकार सिंचाई विभाग, भूगर्भ जल विभाग तथा लघु सिंचाई विभाग का जो स्तर (स्टेटस) है, प्रदान करते हुए जल निगम को जलशक्ति मंत्रालय/नमामि गंगे एवं ग्रामीण जलापूर्ति विभाग में समाहित कर दिया जाय।
जल निगम द्वारा सामाजिक क्षेत्रों के विकास के लिए कार्य करने के फलस्वरूप उसकी सामाजिक उपादेयता के दृष्टिगत जल निगम कर्मियों का वेतन एवं पेंषन कोषागार (टेªजरी) से सम्बद्व कर दी जाए तथा जल निगम को विभिन्न मदों से दी जाने वाली सेन्टेज राषि जल निगम को न देकर शासन के राजकोष में जमा की जाय।
24 हजार निगम कार्मिकों के मन की बाॅत