नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि विवादास्पद सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) मुद्दे का अब तक कोई समाधान नहीं हो सका है। केंद्र ने कहा है कि जल शक्ति मंत्री की पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक बेनतीजा रही लेकिन समाधान के लिए आगे भी प्रयास जारी रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को दायर एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि गत वर्ष 6 सितंबर को शीर्ष अदालत के दिए आदेश के मद्देनजर जल शक्ति मंत्री के आग्रह पर पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्री की बैठक हुई थी। इसके बाद जल शक्ति मंत्री की दोनों मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक हुई। केंद्र सरकार ने कहा है कि बैठक के दौरान पंजाब का कहना था कि रावी, ब्यास व सतलुज नदियों में पानी की उपलब्धता कम हो गई है और ऐसे में हरियाणा के साथ साझा करने के लिए कोई अतिरिक्त पानी उसके पास नहीं है।
1985 के पंजाब बंदोबस्त (राजीव-लोंगोवाल समझौते) की एसवाईएल को पूरा करने से संबंधित खंड पर चर्चा करने से पहले अन्य मुद्दों पर चर्चा की जाए। चूंकि ब्यास और सतलुज नदियों में हरियाणा के साथ साझा करने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है इसलिए एसवाईएल नहर के निर्माण का सवाल नहीं उठता। उसका यह भी कहना है कि वर्ष 2016 में पंजाब ने पहले ही एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए अधिग्रहित भूमि को डीनोटिफाई कर किसानों को लौटा दिया था।
ऐसे में अब एसवाईएल नहर के निर्माण से कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है। वहीं बैठक में हरियाणा का विचार था कि सुप्रीम कोर्ट ने एसवाईएल नहर के निर्माण का आदेश पारित कर रखा है, इसलिए पंजाब को उस आदेश का अनुपालन करने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने कहा है कि उसके द्वारा भरपूर प्रयास के बावजूद एसवाईएल नहर के निर्माण को लेकर कोई समाधान नहीं निकल सका है। हालंकि दोनों राज्यों ने इस मुद्दे पर समाधान को लेकर भविष्य में होने वाली बैठक में शामिल होने पर सहमति जताई है।
इस मामले में अब तक पंजाब ने हरियाणा से 18 नवंबर 1976 को 1 करोड़ रुपये लिए और 1977 को एसवाईएल के निर्माण को मंजूरी दी। बाद में पंजाब ने एसवाईएल नहर के निर्माण को लेकर आनाकानी करनी शुरू कर दी। 1979 में हरियाणा ने एसवाईएल के निर्माण की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।पंजाब ने 11 जुलाई, 1979 को पुनर्गठन एक्ट की धारा 78 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। 1981 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौजूदगी में दोनों राज्यों का समझौता हुआ।1982 में इंदिरा गांधी ने पटियाला के गांव कपूरी में टक लगाकर नहर का निर्माण शुरू करवाया। इसके विरोध में शिरोमणि अकाली दल ने एसवाईएल की खुदाई के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।
1990 में 3 जुलाई को एसवाईएल के निर्माण से जुड़े दो इंजीनियरों की भी हत्या कर दी गई। 2015 में हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई के लिए संविधान पीठ बनाने का अनुरोध किया। 2016 में गठित 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने पहली सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को बुलाया।2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों राज्य नहर का निर्माण नहीं करते हैं तो कोर्ट खुद नहर का निर्माण कराएगा। अभी 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दोनों राज्यों के बीच हुई बैठकों की रिपोर्ट केंद्र 19 जनवरी को दाखिल कर चुका है।