कानपुर के पनकी मंदिर में हनुमान जी के प्रतिष्ठापन हेतु बाबा जी महाराज की मंशा थी कि इतना वृहद भण्डारा हो कि जिसमें हजारों-हजारों की संख्या में जनता प्रसाद पाये परन्तु संयोजकों द्वारा केवल सीमित वर्ग एवं संख्या के लिए ही व्यवस्था हो पाई।
साथ में हनुमान जी का भण्डारा प्रसाद बनाने के लिए भी केवल डालडा का ही प्रबन्ध हो पाया था (जबकि महाराज जी के समस्त ऐसे कार्यों में केवल शुद्ध घी का प्रयोग होता रहा- चाहे वह नीब करौरी में एक माह का यज्ञ हो, चाहे हनुमान मंदिरों-आश्रमों में नित्य का भोजन प्रसाद या भण्डार प्रसाद अथवा लड्डू आदि का भोग अर्पित होता हो, और चाहे कोई भी अन्य अनुष्ठान सम्पन्न होता हो।)
और तब कानपुर ( पनकी) में भी महाराज जी की इस इच्छा को कौन अवरुद्ध कर सकता था । अस्तु, प्रथम तो डालडा ही देशी घी में परिवर्तित हो गया ! संयोजक देखते ही रह गये। और फिर संयोजित सामग्री में स्वतः इतनी अधिक वृद्धि होती गई कि बिना बुलाये ही हर वर्ग, हर वर्ण, हर जाति की हजारों-हजारों की संख्या में जनता न केवल प्रतिष्ठापन दिवस में हनुमान जी का प्रसाद पाने टूट पड़ी वरन आगे के कुछ दिनों तक भी यह सिलसिला जारी ही रहा !! (सामग्री इतनी प्रचुर मात्रा में बची रही !!) लगता था मानों महाराज जी धकेल धकेल कर जनता को भेजते जा रहे हैं पनकी को अपना प्रसाद पवाने !! प्रबन्धकों व्यवस्थापकों का भण्डारा न होकर यह बाबा जी महाराज की मंशा-शक्ति द्वारा संचालित भण्डारा हो गया ।
इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात यह रही कि प्रतिष्ठा के दिन महाराज जी इलाहाबाद में ही दादा के घर एक कमरे में (साढ़े तीन-चार घंटे) बन्द रहे – घोर निद्रा (?) में निभग्न !! वहीं से ही रहस्यपूर्ण रूप से संचालन होता रहा क्या? क्योंकि पनकी में उपस्थित प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बाबा जी महाराज स्वरूप में भी तथा अन्य रूपों में भी मंदिर के आस-पास ही घूम घूम कर प्रबन्ध संचालित कर रहे थे तथा कई भक्तों से उनकी बातचीत भी हुई, यद्यपि हम सब उस काल दादा के घर उन्हें कमरे में सोते हुए देखते रहे !! (और उनके जागने पर मैंने खिड़की की दरार से स्पष्ट देखा कि बाबा जी ने कम्बल से मुँह बाहर निकाला और उसी समय कमरे में प्रवेश करती श्री माँ के हाथ में कुछ रख दिया – क्या पनकी हनुमान जी के प्रतिष्ठापन का प्रसाद ?)
॥ राम राम ॥
प्रस्तुति:- रवि सिंह
नगर निगम, लखनऊ