लखनऊ। प्रदेश में विगत 2 दिनों से कुछ बिजली कर्मिकों व अभियन्ता संगठनों द्वारा किये जा रहे कार्य बहिष्कार से पूरे प्रदेश में विद्युत उपभोक्ताओं को हो रही परेशानियों के मददेनजर उ.प्र.राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आज विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन आर पी सिंह व सदस्य वी के श्रीवास्तव से मुलाकात कर एक लोक महत्व जनहित याचिका प्रस्तुत की है। याचिका मेें कहा गया कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 23 व विद्युत वितरण संहिता 2005 के तहत आयोग द्वारा प्राविधानित स्टैण्डर्ड आफ परफारमेन्स कानून का कार्य बहिष्कार के दौरान पालन नही हो रहा है। ज्यादातर बिजली कम्पनियों में विद्युत उपभोक्ताओं को परेशानी उठानी पड रही है। प्रदेश की बिजली कम्पनियों में सभी कार्मिकों व अभियन्तओं को जो वेतन उपलब्ध कराया जाता है। उसका भार प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दर में पडता है। विगत वर्ष 2022-23 की बात करें तो एक वर्ष के लिये आयेाग ने 2903 करोड सेलरी के मद में खर्चा पॉंचों वितरण कम्पनियों का अनुमोदित किया। एक दिन का खर्चा यदि निकाल लिया जाये तो लगभग 8 करोड होगा। ऐसे में यदि 50 प्रतिशत कार्मि कार्य बहिष्कार पर हैं तो एक दिन का जो 4 करोड का खर्चा है। सूप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश काम नही तो वेतन नही के आधार पर कार्य बहिष्कार कर रहे कार्मिकों का वेतन काटकर उसका लाभ उपभोक्ताओं को आगामी विद्युत दर में दिया जाये। इसका सही आंकलन पारेषण एवं उत्पादन सभी बिजली निगमों से मंगाकर करा लिया जाये कि कितने कार्मिक व अभियन्ता कार्य बहिष्कार पर है। उसके आधार पर काम नही तो वेतन नही की कटौती कर उसका लाभ टैरिफ में दिया जाये।
आयोग चेयरमैन आर पी सिंह ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया तत्पश्चात आयोग के सचिवसंजय कुमार सिंह की तरफ से पावर कारपोरेशन के चेयरमैन व प्रबन्ध निदेशक को उपभोक्ता परिषद द्वारा दाखिल याचिका पर यह ऐतिहासिक निर्देश जारी किया गया कि किसी भी स्तर पर अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा कार्य बहिष्कार की अवधि में भी प्रदेश की सभी बिजली कम्पनियों द्वारा यह सुनिश्चित किया जाये कि विद्युत वितरण संहिता 2005 द्वारा प्राविधानित स्टैण्डर्ड आफ परफारमेन्स (एसओपी) का अनुपालन हो। बिजली प्रबन्धन यह सुनिश्चित करे कि किसी भी स्तर पर उपभोक्ताओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा अब वह दिन चले गये कार्य बहिष्कार करो उपभोक्ता परेशान हो समझौते करने के उपरान्त पूरी सेलरी ले लो और उपभोक्ता ठगा महसूस करे। यह व्यवस्था अब चलने वाली नही है।