प्रेम शर्मा
बिजनेसमैन गौतम अडानी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद उनका बिजनेस लगातार विवादों में घिरा हुआ है। दुनिया के नंबर एक अमीर बनने की दौड़ में शामिल रहे गौतम अडानी अब टॉप-20 अमीरों की लिस्ट से भी बाहर हो गए हैं। अडानी ने पिछले साल 44 अरब डॉलर की कमाई की थीं। इस मामले को लेकर विपक्ष लगातार सरकार पर दबाव बना रहा है। विपक्ष ने सदन में मांग रखी है कि इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराई जाए।जबकि दूसरी तरफ रिपोर्ट आने के कई दिन बाद सरकारी की तरफ सामान्य टिप्पणी आई है। उधर रिपोर्ट को लेकर अड़ाणी गु्रप ने सुप्र्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। एडवोकेट एम एल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका को दायर कर मांग की गई है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आरोपों की जांच की जाए। हिंडनबर्ग के खिलाफ मामला दर्ज हो। निवेशकों को बड़ा नुकसान हुआ है।
पूरे देश में आर्थिक हलचल मचाने वाले इस मामले में वित्त सचिव टीवी सोमनाथन का यह बयान कई मायने में अहम है। अड़ाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट से शेयर बाजार में मची आपाधापी वृहद- आर्थिक नजरिये से ‘ चाय के प्याले में उठा तूफान ’’ भर है। ‘चाय के प्याले में उठा तूफान एक मुहावरा है। जिसका मतलब है कि ऐेसे मामले को लेकर गुस्सा और चिंता दिखाना जो महत्वपूर्ण नहीं है। वित्त मंत्रालय के सबसे वरिष्ठ अधिकारी सोमनाथ के मुताबिक भारत की सार्वजनिक वित्तीय प्रणाली काफी मजबूत है और शेयर बाजार की उठापटक सरकार की चिंता का विषय नहीं है। इस बारे में जरूरी कदम उठाने के लिए स्वतंत्र नियामक मौजूद हैं। अड़ाणी समूह की कंपनियों पर लगे धोखाधड़ी के आरोपों का बैंकों एवं बीमा कंपनियों पर संभावित असर के बारे में पूछे जाने पर वित्त सचिव ने कहाॉ जमाकर्ताओं या पॉलिसीधारकों या इन कंपनियों के किसी भी शेयर धारक के लिए वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है। किसी भी एक कंपनी का शेयर ऐसा नहीं है कि वह वृहद-आर्थिक स्तर पर कोई असर ड़ाल सके। लिहाजा उस नजरिये से चिंता की कोई बात नहीं है। अड़ाणी समूह की कंपनियों का मूल्यांकन पिछले दस दिनों में १०० अरब ड़ॉलर तक गिर चुका है। समूह की अग्रणी कंपनी अड़ाणी एंटरप्राइजेज के शेयर दिसम्बर के अपने उच्च भाव से अब तक ७० प्रतिशत तक लुढक चुके हैं। सोमनाथन ने अड़ाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट का विनिवेश संग्रह के संशोधित अनुमानों पर कोई असर पड़ने की आशंका से भी इनकार किया। उनके अनुसार यह एक किनारे पर चलने वाला मामला है। शेयर बाजार और निवेश में दिलचस्पी रखने वाले उसे लेकर उत्सुक हैं लेकिन वृहद आर्थिक नजरिये से यह कोई मुद्दा नहीं है। हमारी राय में यह पूरी तरह गैर मुद्दा है। जबकि संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सरकार का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि विपक्ष इस मुद्दे को इसलिए उठा रहा है क्योंकि उनके पास कोई दूसरा मुद्दा नहीं है।सेबी ने इस मामले में बयान जारी किया है। सेबी ने कहा है कि वह शेयर बाजार की अखंडता और सभी आवश्यक निगरानी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। किसी शेयर में अत्याधिक उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि बाजार नियामक की ओर से जारी किए बयान में अडानी ग्रुप का नाम नहीं लिया गया था। पिछले हफ्ते देश के बड़े कारोबारी समूह अडानी के शेयरों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला था। सेबी का यह बयान भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई के उस बयान के बाद आया है जिसमें उधारदाताओं की चिंताओं को दूर करते हुए कहा गया है कि देश की बैंकिंग प्रणाली लचीली और स्थिर बनी हुई है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को कहा कि अडानी समूह के 20,000 करोड़ रुपये का एफपीओ वापस लेने से देश की वृहत आर्थिक बुनियाद और अर्थव्यवस्था की छवि प्रभावित नहीं हुई है। अडानी ग्रुप को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़घ्यिा ने कहा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और साख शक के घेरे में है। अमेरिका में शॉर्ट सेलर्स के खिलाफ जांच चल रही है।अडानी ग्रुप को लेकर धीमे-धीमे फैक्ट्स सामने आ रहे हैं। उसमें हमारी बैंकों का एक्सपोजर बहुत कम है। उन्होंने कहा कि ये कंपनियां यह भी दावा करती हैं कि उनके पास दशकों का अनुभव है, लेकिन हिंडनबर्ग खुद छह साल पुरानी कंपनी है। हिंडनबर्ग की यह अब तक की हिस्ट्री रही है।दरअसल वह पैसा देश के आम आदमी का है। अडानी की कंपनियों की सम्यक जांच इसलिए भी तर्कसंगत और अनिवार्य है, ताकि समूह ‘अग्नि-परीक्षा’ दे सके। यदि कोई आर्थिक घोटाला आकार ले रहा है या कंपनियों की बैलेंस शीट में हेराफेरी की गई है अथवा अडानी समूह भीतर से खोखला है या कंपनियों के शेयर ओवर वेल्यूड हैं अथवा अडानी समूह ने कुछ फर्जी ‘कागजघ्ी कंपनियां’ भी बना रखी हैं, इन तमाम सवालों के सच सामने आने चाहिए। अमरीकी फर्म की रपट के बाद से अब तक अडानी समूह की संपत्ति 8.76 लाख करोड़ रुपए घट चुकी है। तमाम कंपनियों के शेयर नकारात्मक हैं।
समूह की प्रमुख 5 कंपनियों पर 1.62 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। रपट से पहले का सच यह था कि अडानी की संपत्ति बीते ढाई साल के दौरान 13 गुना बढ़ी थी। बीते तीन साल में कंपनियों के शेयरों में करीब 819 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी और चेयरमैन गौतम अडानी दुनिया के अमीरों की सूची में दूसरे-तीसरे स्थान तक पहुंच गए थे। अब अडानी 20 वें स्थान तक लुढक चुके हैं। सुखद खघ्बर यह है कि बैंकों ने फिलहाल स्पष्ट किया है कि उनका निवेश सुरक्षित है। भारतीय स्टेट बैंक समेत कई बैंक अपनी रपट रिजर्व बैंक को भेज रहे हैं। केंद्रीय बैंक ने निवेश और कजघर्् के ब्योरों की रपटें बैंकों से तलब की थीं। एलआईसी का मात्र एक फीसदी निवेश अडानी समूह में है। उसने टाटा, रिलायंस, एल एंड टी आदि कई सूचीबद्ध कंपनियों में भी निवेश कर रखा है। अडानी समूह की कंपनियों के खुलासों और फिर शेयरों का लगातार धड़ाम होते रहना भारत के संदर्भ में एक चिंतित सरोकार तो है, क्योंकि इन कंपनियों में आम भारतीय की गाढ़ी कमाई का पैसा लगा है, लेकिन यह विदेशी रपट भारत की संप्रभुता, सम्पन्नता और आर्थिक बढ़ोतरी पर प्रत्यक्ष आक्रमण नहीं मानी जा सकती। देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री भी इतने अशक्त नहीं हैं कि एक विदेशी फर्म उन्हें निशाने पर ले सके, लिहाजा हमारे विपक्षी दलों को न तो लोगों में दहशत पैदा करनी चाहिए और न ही संसद के भीतर उबाल के हालात होने चाहिए। बहरहाल रिजर्व बैंक, सेबी, एनएसई और अघोषित तौर पर प्रवर्तन निदेशालय अपने-अपने स्तर पर जांच कर रहे हैं।