उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री की संस्तुति न होते हुए भी बाबा जी महाराज ने गोमती के किनारे शार्हेशाह कोठी के पार्श्व में (पाँचवें दशक में देखते देखते एक हनुमान मंदिर खड़ा करवा दिया। (यह मंदिर तो केवल भूमिका मात्र थी बाबा जी महाराज की मंशा-लीला की जिसके अन्तर्गत युनिवर्सिटी के सामने एक विशाल हनुमान मंदिर बनना था जिसमें हजारों की संख्या में हनुमान भक्त एवं युनिवर्सिटी के छात्र अपनी मनोकामनायें पूर्ण करवा सके।) मंदिर के पीछे बाबा जी के लिए एक कुटिया-नुमा कमरे का भी निर्माण हो गया।
कुछ काल बाद गोमती में भीषण बाढ़ आ गई। तब उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आग्रह हुआ कि चूँकि मंदिर के कारण बाढ़ के पानी से उस पार सरकारी भवनों को क्षति पहुँचने का अंदेशा हो गया है, इसलिए मंदिर हटा लिया जाये (जिस हेतु सरकार ने 25000) रु० की रकम तथा यूनिवर्सिटी के सामने एक बड़े क्षेत्र को नये मंदिर के लिए दे देने की भी पेशकश की ) परन्तु बाबा जी तो जानते थे कि नया मंदिर कैसे बनेगा और कौन बनायेगा । अस्तु, उन्होंने कहला दिया कि मंदिर नहीं हटेगा – गोमती चाहे तो ले जाये ॥ साथ में भक्तों से महाराज जी ने कह दिया। कि हनुमान जी को बाढ़ से कुछ न होगा।
गोमती में पुनः 2-3 बार उसी प्रकार की भीषण बाढ़ आई। शहर के उस पार के कई क्षेत्र बाढ़ में डूबे रहे। यद्यपि गोमती इस बाद में बाबा जी की कुटिया तो ले गई पर हनुमान जी और मंदिर अपनी जगह खड़े रहे और आज भी यथावत खड़े हैं !
इसी बीच बम्बई की एक निर्माण कम्पनी ने गोमती के ऊपर पुराने जीर्ण-शीर्ण पुल (मंकी बिज) से कुछ हटकर एक नया पुल (वर्तमान हनुमान सेतु) बनाना प्रारम्भ कर दिया था जिसका मुख्य ठेका बम्बई के श्री एस० बी० जोशी को मिला था। परन्तु बीच में कम्पनी मालिक का पुत्र भीषण रूप से रोगग्रस्त हो गया। तभी उसे स्वप्न हुआ कि उ० प्र० सरकार द्वारा नये हनुमान मंदिर हेतु प्रदत्त भूमि पर मंदिर बनवा दे। तब बाबा जी से आज्ञा प्राप्त कर उसने सहर्ष सरकार द्वारा दी गई 25000) रु० की धनराशि स्वयं गृहीत कर तथा उसमें स्वये की भी पूँजी लगाकर अपने आर्किटेक्टों द्वारा बनाये गये अद्वितीय आकार के हनुमान मंदिर का निर्माण करवा दिया। मंदिर बनते बनते ठेकेदार का लड़का भी पूर्णतः रोगमुक्त हो गया ।
साभार:- रवि सिंह, नगर निगम लखनऊ