हाउस टैक्स को आधा कर दीजिए। साफ़-सफ़ाई, पानी खड़ंजा-सड़क जैसी सुविधाओं को हाउस टैक्स से लिंक कर दीजिए। हाउस टैक्स के रसीद नंबर पर प्राथमिकता के आधार पर करदाताओं को यह सारी सुविधाएँ मिलें।
हाउस टैक्स निर्धारण और कलेक्शन का काम टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस या इस जैसी किसी विश्वसनीय निजी संस्था को सौंप दीजिए। (भारत में पासपोर्ट बनाने का काम भी टीसीएस बेहद प्रभावी तरीक़े से कर रही है) निर्माण समेत सारे विकास कार्य PWD को स्थानांतरित कर दीजिए। ख़ाली हो चुके कर्मचारियों को अन्य विभागों में समायोजित कीजिए। ख़र्च कम कीजिए।करदाताओं के एक-एक पैसे का सही और कॉस्ट इंफ़ेक्टिव उपयोग हो। जवाबदेही के साथ।
नगर निगम के ज़िम्मे साफ़ सफ़ाई का काम हो। सिर्फ़ मैनेजमेंट। एक्ज़ीक्यूशन निजी संस्थाएं करें। मॉनीटरिंग का ज़िम्मा हर वॉर्ड की नागरिक समितियों के ज़िम्मे हो। इन सब का एक ऑनलाइन इंटरफ़ेस हो। जिससे किसी को भी कहीं भी भागा दौड़ी न करनी पड़े।
पूरे उत्तर प्रदेश में ना सही सिर्फ़ लखनऊ नगर निगम में एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह यह सारे इनोवेटिव सुधार लागू कीजिए और परिणाम देखिए।
कुछ समय पहले एक सार्वजनिक कार्यक्रम में राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन ने ठीक ही कहा था कि “सभी टैक्स नहीं देते पर सुविधाएँ सबको चाहिए।” हम टैक्स व्यवस्था को तर्कसंगत और पारदर्शी बनाकर ही इस विसंगति को दूर कर सकते हैं। सरकार को यह भी ध्यान रखना होगा कि शहर की तमाम आधुनिक सुख सुविधाओं का उपयोग करने के बावजूद जो 60% लोग टैक्स नहीं देते हैं उनके हिस्से का टैक्स 40% नागरिकों से ना वसूला जाए।
यदि शहर के सभी प्रॉपर्टी ओनर टैक्स दें तो सभी को महीने के ₹500 से ज़्यादा टैक्स नहीं देना पड़ेगा। और हम सुविधाएँ भी लंदन और अमेरिका जैसी बेहतरीन कर सकते हैं। वास्तव में हमें नए टैक्स नहीं, नए टैक्सपेयर्स चाहिएँ।
जब दिये गये टैक्स के बदले सुविधाएँ भी पूरी मिलेंगी तो शहर का हर एक नागरिक स्वतः पूरा टैक्स देने को तत्पर होगा। मेरा मानना है 98% लोग मूलतः स्वभाव से ईमानदार होते हैं। ग़लत नीतियों उन्हें गलती के लिए मजबूर करती हैं। फिर धीरे-धीरे यह एक सामाजिक फ़ैशन बन जाता है। अधिकारी- कर्मचारी हों या टैक्स इवेड करने वाले आम नागरिक, किसी को भी नकारा-बेईमान कह देना समस्या की सूचना भर है समाधान नहीं।
पुरानी और बड़ी समस्या का स्थाई व प्रभावी समाधान चाहिए तो उपाय भी बड़े करने होंगे। ढर्रे वाली पुरानी सोच को छोड़कर इनोवेटिव उपाय करने होंगे। जो पहले कभी न हुए हों।
राजनीतिक नफ़े नुक़सान वाली लफ़्फ़ाज़ियों से समस्या को टाला और मन को बहलाया जा सकता है। समाधान चाहिए तो हमें साहस करना ही होगा।
प्रस्तुति:-मनीष खेमका
सदस्य
लखनऊ स्मार्ट सिटी एडवाइजरी फोरम