नई दिल्ली। बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल, न्यायपालिका और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली पर टिप्पणी को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू और उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ के खिलाफ दाखिल याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अब लॉयर्स एसोसिएशन ने यह कदम उठाया है।
बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 9 फरवरी के आदेश को इस आधार पर खारिज करने के लिए चुनौती दी है कि यह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकार क्षेत्र को लागू करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं था। वकील अहमद आब्दी जानकारी दी कि आज हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका मंगलवार को दायर की गई है।
बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने दावा किया था कि रिजिजू और धनखड़ ने अपनी टिप्पणियों और आचरण से संविधान में विश्वास की कमी दिखाई है। इसने धनखड़ को उपाध्यक्ष के रूप में कर्तव्य का निर्वहन करने और रिजिजू को केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के आदेश मांगे थे।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट मई में उस याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें सजायाफ्ता व्यक्तियों को राजनीतिक दल बनाने और चुनाव कानूनों के तहत अयोग्य ठहराए जाने की अवधि के लिए उनका पदाधिकारी बनने से रोकने की मांग की गई है। शीर्ष कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह इस जनहित याचिका पर मई के पहले सप्ताह में सुनवाई करेगा।
मंगलवार को वकील अश्विनी उपाध्याय ने न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ से मांग की थी कि इस पर 5 या 6 अप्रैल को सुनवाई की जाए। इस पर पीठ ने पूछा कि इसकी तात्कालिकता का क्या कारण है?
बता दें कि वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने 2017 में यह जनहित याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि सजायाफ्ता राजनेता, जिन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है, वे अभी भी राजनीतिक दल चला सकते हैं और उनमें पद संभाल सकते हैं, इसके अलावा यह भी तय कर सकते हैं कि कौन विधायक बनेगा। याचिका में दोषी व्यक्तियों पर चुनाव कानूनों के तहत अयोग्य ठहराए जाने की अवधि के लिए राजनीतिक दल बनाने और पदाधिकारी बनने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।