द्विवर्षीय
‘आजादी का अमृत महोत्सव’ राष्ट्रीय स्तर पर जोर-शोर के साथ मनाया जा रहा है। ‘ग्राम फीना के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनकी संघर्ष गाथा’ नामक यह पुस्तक इस महोत्सव को लक्षित कर सेनानियों पर लिखी और प्रकाशित होने वाली पहली विशिष्ट पुस्तक है। इस पुस्तक को सिंचाई विभाग उत्तर प्रदेश में सहायक अभियंता और ग्राम फीना जनपद बिजनौर के मूलनिवासी इं. हेमंत कुमार ने लिखा है। यह पुस्तक दिसंबर 2021 में प्रकाशित हुई थी। इसमें ग्राम फीना के कुल इक्यावन सेनानियों का यथासंभव वर्णन किया गया है जिनमें तैंतीस गुमनाम सेनानी हैं। जनपद बिजनौर से जुड़े लगभग बीस अन्य सेनानियों का भी सुंदर विवरण पुस्तक में दिया गया है। इन सब के अलावा लगभग पचपन अन्य सेनानियों का भी जिक्र हुआ है।
पुस्तक सेनानियों के अनेक दुर्लभ चित्रों, दस्तावेजों तथा आन्दोलन से जुड़े अनसुने काव्य-कविताओं से सुसज्जित है। पुस्तक में सेनानियों के व्यक्तित्व और कृतित्व से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें बहुत ही रोचक और प्रामाणिक तरीके से प्रस्तुत की गई हैं। लेखक ने जनपद बिजनौर के पाँच स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का साक्षात्कार भी लिया और पुस्तक में एक अलग अध्याय बनाकर प्रस्तुत किया है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़े जनपद बिजनौर के कुछ सेनानियों का संबंध भी बड़े रोचक और शोध पूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया है। ग्राम फीना के गुमनाम सेनानियों पर पहली पुस्तक होने के साथ-साथ यह फीना के इतिहास पर लिखी पहली पुस्तक है। इस कारण यह अत्यंत मौलिक और गहन खोज से भरी है। अभी तक देश में किसी गाँव के सेनानियों को केंद्रित कर लिखी हुई कोई पुस्तक देखने-सुनने को नहीं मिलती, यह अभाव इस पुस्तक ने पूरा किया है। इस पुस्तक के लिए फीना के दो गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संदेश प्राप्त हुए जिनको पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। इनके साथ ही कई सेनानियों के वंशजों और अनेक गणमान्य लोगों ने भी इस पुस्तक के लिए शुभकामना संदेश भेजे हैं, ये संदेश भी महत्वपूर्ण अभिलेख हैं।
पुस्तक A 4 पेपर के आकार में छापी गई है। इसकी छपाई साफ-सुथरी और अच्छी है। पुस्तक सरल और प्रवाहमय हिंदी में लिखी गई है इसलिए इसको बच्चे और सामान्य व्यक्ति भी आसानी से समझ सकते हैं। इस ग्रन्थाकार रचना के प्रथम संस्करण में लगभग 302 पृष्ठ हैं। पुस्तक का आवरण अर्थपूर्ण और आकर्षक है, इसका डिजाइन लेखक ने स्वयं किया है। इन्होंने पुस्तक को बहुत मन और उर्जा लगा कर लिखा है। अनेक सेनानियों के फोटो उपलब्ध नहीं थे। इस पुस्तक में सेनानियों के जो चित्र लगे हैं उनमें से कई के चित्र इं. हेमन्त कुमार ने खुद तैयार किए हैं। ये स्मृति आधारित चित्र तैयार करने के लिए सेनानियों को देखने-सुनने वाले पुराने लोगों से सहयोग लिया गया। यह बहुत कठिन कार्य होता है, जिसे धैर्य के साथ पूरा किया गया।
मुझे पुस्तक की प्रूफ रीडिंग का अवसर मिला था। पुस्तक में वर्तनी त्रुटियों के सुधार की कुछ स्थानों पर आवश्यकता प्रतीत हुई। कुछ घटनाओं का भी दोहराव देखने को मिलता है। पुस्तक में चित्र बड़ी संख्या में दिए गए हैं यदि पुस्तक को रंगीन छापा जाता तो पुस्तक का आकर्षण बढ़ जाता। इन छोटी-मोटी कमियों को छोड़ दिया जाए तो यह पुस्तक अपना उद्देश्य भली-भांति पूर्ण करती है।
इस पुस्तक के लिए लेखक इं. हेमंत कुमार कई वर्षों से निरंतर तथ्यों का संकलन कर लेख लिखते रहे। इससे सेनानियों के प्रति स्थानीय निवासियों में गौरव का संचार हुआ। इं. हेमंत कुमार की पहल, योजना और मार्गदर्शन पर फीनावंशियों ने आपसी सहयोग करते हुए पिछले वर्ष फीना ग्राम कल्याण समिति के माध्यम से एक भव्य स्मारक का निर्माण कराया। इस स्मारक के निर्माण की प्रक्रिया भी काफी उतार-चढ़ाव भरी और रोचक रही। पुस्तक में स्मारक निर्माण से लोकार्पण तक की प्रक्रिया को सचित्र और सुव्यवस्थित तरीके से लिखा गया है। फीना में नवनिर्मित स्मारक का निर्माण लेखक द्वारा पूर्व में किए गए इतिहास लेखन और संवर्धन कार्यों की सार्थकता और उच्च महत्व का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस महत्वपूर्ण पुस्तक के लिए लेखक को विवेक पुस्तकालय शादीपुर बिजनौर द्वारा इतिहास सेवा सम्मान और इक्यावन सौ रूपये का पुरस्कार इसी वर्ष अप्रैल में दिया गया। यह पुस्तक देश के बुद्धिजीवियों और स्थानीय लेखकों को प्रेरित करेगी कि वे अपने-अपने गाँव और क्षेत्र का इतिहास खोज कर लिपि बद्ध करें। राष्ट्रीय स्तर पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है और स्वतंत्रता की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ आने वाली है ऐसे महत्वपूर्ण अवसर पर इस पुस्तक का आना सोने पर सुहागा कहा जाएगा। आजादी के अमृत महोत्सव के उद्देश्यों को भी यह पुस्तक आदर्श और सुन्दर तरीके से पूरा करती है। यह पुस्तक ग्रामीण और दूर दराज क्षेत्र के गुमनाम सेनानियों के लिए भी सच्ची श्रद्धांजलि है। पुस्तक के माध्यम से गुमनाम बलिदानियों और सेनानियों को तो उचित मान-सम्मान प्राप्त हुआ ही है साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिए भी यह पुस्तक अनमोल धरोहर है। लेखक इस अद्वितीय और प्रेरक रचना के लिए बधाई, प्रशंसा और सम्मान के पात्र हैं।
समीक्षक-शिवचरन सिंह राठौर, पूर्व चीफ टेक्नीकल ऑफिसर IISWC देहरादून